सोचना जरूरी है
ऐसे समय में
जब आदमी अपनी पहचान खो रहा है
बाजार हो रहा है हावी
और आदमी बिक रहा है
कैसी बच सकेगी आदमियत
यह सोचना जरूरी है।
टीवी पर दिखती रंग बिरंगी तस्वीरें
हकीकत नहीं है
और न ही पेज 3 पर के चेहरे
आज भी बच्चे
दो जून की रोटी के लिये
चुनते हैं कचरे
और करते हैं बूट पालिष
अरमानों को संजोये
हजारों लडकियां
पहुंच जाती हैं देह मंडी के बाजार में
और यही हकीकत है।
पूरी दुनिया की भी यही तस्वीर है
जब बाजार हो रहा है हावी
तो इनकी
किसी को भी फिक्र नहीं है
बावजूद इसके
जब हमें बचना है
आदमियत को बचाना है
तो इसपर सोचना जरूरी है।
जब आदमी अपनी पहचान खो रहा है
बाजार हो रहा है हावी
और आदमी बिक रहा है
कैसी बच सकेगी आदमियत
यह सोचना जरूरी है।
टीवी पर दिखती रंग बिरंगी तस्वीरें
हकीकत नहीं है
और न ही पेज 3 पर के चेहरे
आज भी बच्चे
दो जून की रोटी के लिये
चुनते हैं कचरे
और करते हैं बूट पालिष
अरमानों को संजोये
हजारों लडकियां
पहुंच जाती हैं देह मंडी के बाजार में
और यही हकीकत है।
पूरी दुनिया की भी यही तस्वीर है
जब बाजार हो रहा है हावी
तो इनकी
किसी को भी फिक्र नहीं है
बावजूद इसके
जब हमें बचना है
आदमियत को बचाना है
तो इसपर सोचना जरूरी है।
Labels: कविता
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