और सपने टूट गये
वह कहना चाहता है
पर कह नहीं पाता है
मुंह खोलता है
पर मूक रह जाता है।
आंखें बताते हें भाव उसके
वह कैसे कहे, उसके सपने थे
जो अब हैं टूट गये
उसके पास मांगने के
अलावा हैं नहीं रास्ते।
बढे हुए हाथ ही
बताते हैं उसकी परिस्थितियां
चेहरे हैं उसके बुझे हुए
भोजन हैं नहीं बने उसके लिये।
वह लाचार है
कोई उसे देखता नहीं
वह मांगता है
फिर भी कोई देता नहीं
कोई क्या समझ पायेगा
उसकी ये मजबूरी।
पर कह नहीं पाता है
मुंह खोलता है
पर मूक रह जाता है।
आंखें बताते हें भाव उसके
वह कैसे कहे, उसके सपने थे
जो अब हैं टूट गये
उसके पास मांगने के
अलावा हैं नहीं रास्ते।
बढे हुए हाथ ही
बताते हैं उसकी परिस्थितियां
चेहरे हैं उसके बुझे हुए
भोजन हैं नहीं बने उसके लिये।
वह लाचार है
कोई उसे देखता नहीं
वह मांगता है
फिर भी कोई देता नहीं
कोई क्या समझ पायेगा
उसकी ये मजबूरी।
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